लालू के चक्कर में बर्बाद हो गई कांग्रेस, छोड़ गए सवर्ण, बार बार मिलता रहा धोखा

बिहार विधानसभा की 02 सीटों के लिए हो रहे उपचुनाव में कांग्रेस और आरजेडी के बीच गठबंधन टूट गया है. कुशेश्वरस्थान और तारापुर सीटों पर कांग्रेस और आरजेडी के प्रत्याशी अलग अलग ताल ठोंक रहे हैं.

आम तौर पर यह माना जाता है कि बिहार में कांग्रेस का जनाधार नहीं के बराबर है लेकिन एक सच यह भी है कि जब जब आरजेडी कांग्रेस से अलग हुई है तब तब आरजेडी कमजोर ही नहीं बल्कि बुरी तरह से कमजोर हुई है.

वर्ष 2000 के बिहार विधानसभा चुनाव की बात करें तो उसी दौरान बिहार की जनता ने लालू राबड़ी शासन के खिलाफ जनादेश दिया था. जनादेश आरजेडी के खिलाफ गया था. किसी भी पार्टी को बहुमत नहीं मिला था. लिहाजा राज्य में राष्ट्रपति शासन लग गया. कुछ दिनों के लिए नीतीश कुमार को सीएम बना दिया गया क्योंकि एनडीए सबसे बड़े गठबंधन के तौर पर उभर कर सामने आया था.

इसी बीच कांग्रेस ने फैसला ले लिया कि वो आरजेडी का समर्थन करेगी. उस वक्त कांग्रेस के 24 विधायक जीत कर बिहार विधानसभा में पहुंचे थें. अगर कांग्रेस ने उस वक्त आरजेडी को समर्थन नहीं दिया होता तो आरजेडी का काम खत्म था.

एक कड़वी सच्चाई यह भी है कि आरजेडी की सरकार बनवाकर कांग्रेस ने अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार ली. आरजेडी का साथ देने के चक्कर में कांग्रेस ने बिहार में अपने बचे खुचे सवर्ण वोटों को भी खत्म कर लिया. इतना ही नहीं लालू प्रसाद यादव का समर्थन करने के बाद पूरे देश में सवर्णों के बीच कांग्रेस को लेकर गलत संदेश गया और उसी वक्त से तेजी से सवर्ण कांग्रेस से अलग हो गए क्योंकि लालू प्रसाद यादव और उनकी पार्टी सवर्ण विरोधी राजनीति की वजह से ही आगे आए थें.

कांग्रेस ने धर्मनिरपेक्षता के नाम पर लालू का समर्थन कर न सिर्फ उसकी सरकार बनवाई बल्कि वर्ष 2005 में कांग्रेस की केंद्र सरकार ने लालू प्रसाद और आरजेडी की सरकार बनवाने के लिए नीतीश कुमार की सरकार को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लगाया और बिहार में 08 महीने के भीतर दोबारा चुनाव करा दिया गया.

वर्ष 2009 में आरजेडी को लगा की कांग्रेस के पास तो कोई वोट बैंक है नहीं, चलो लोजपा के साथ मिलकर चुनाव लड़ लेते हैं. गुस्से में कांग्रेस ने सभी सीटों पर चुन चुनकर मजबूत उम्मीदवार उतार दिए. 24 सीटों वाली आरजेडी महज 04 सीट ही जीत पाई और केंद्र की यूपीए सरकार से बाहर हो गई. तब से लेकर आज तक आरजेडी के लिए सत्ता का सूखा ही पड़ा हुआ है.

कांग्रेस का दुर्भाग्य तो देखिए, जिस आरजेडी के लिए उसने अपना सब कुछ बर्बाद कर लिया, वही आरजेडी रह रहकर उसे लात मारती रहती है और कांग्रेस बार बार उसी आरजेडी में जाकर चिपक जाती है.

 

आज भी कांग्रेस भले ही आरजेडी से अलग होकर भले ही चुनाव लड़ रही हो लेकिन लोगों में इस बात का भ्रम कायम है कि अगर वो कांग्रेस को जीता भी देते हैं तो उनका विधायक आरजेडी को ही समर्थन करेगा. ऐसे में इन डायरेक्ट को वोट देने से बेहतर है कि डायरेक्ट को ही वोट कर दो… कांग्रेस जब तक आरजेडी के चंगुल से मुक्त होकर यूपी की तर्ज पर एकला चलो की रणनीति नहीं अपनाएगी तब तक उनका बिहार में विकसित होना असंभव है.

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