बाढ़ पर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल क्यों नहीं मिलता पीएम से
बाढ़ पर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल क्यों नहीं मिलता पीएम से
जब जातीय जनगणना के मुद्दे को लेकर पूरे बिहार का पक्ष विपक्ष एक होकर प्रधानमंत्री से मिल सकता है तो बाढ़ के मुद्दे पर सर्वदलीय प्रतिनिधिमंडल क्यों नहीं केंद्र सरकार पर दबाव बनाता है…. नमस्कार द भारत में आपका स्वागत है.
पिछले दिनों एक सुखद दृश्य हम सबको देखने को मिला जब बिहार के सभी राजनीतिक दल एक होकर देश के प्रधानमंत्री से जातीय जनगणना के मुद्दे पर मिलने गए और मजबूती से अपनी बात रखी. निश्चित तौर पर जातीय जनगणना होनी चाहिए. बिहार के सभी राजनीतिक दलों का तर्क है कि जब पेड़ पौधों और पशुओं की गिनती हो सकती है तो अलग अलग जातियों की जनगणना करने में क्या हर्ज है !
अच्छी बात है कि किसी एक मुद्दे पर बिहार का पक्ष विपक्ष एक हो गया और इस तरह से केंद्र सरकार पर जातीय जनगणना के मुद्दे पर दबाव बना लेकिन जो सबसे बड़ी समस्या है बिहार की बाढ़ और पलायन… उस पर कभी सभी दलों ने एकजुटता क्यों नहीं दिखाई, कभी दिल्ली की डगर तक सब एकजुट होकर क्यों नहीं पहुंचे !
ये सवाल सीएम नीतीश कुमार से भी है, नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव से भी है, भाजपा, कांग्रेस और वामदलों से भी है. जातीय जनगणना एक बड़ा मुद्दा हो सकता है लेकिन बिहार की बाढ़ और पलायन तो इन सबसे बड़ा मसला है.
बिहार में बाढ़ हर साल आती है. बड़ी संख्या में लोगों को दर्द और पीड़ा दे जाती है. बिहार की जनता ने सबको शासन का लंबा मौका दिया है. कांग्रेस को भी, भाजपा को भी और भाजपा जदयू को भी पर आज तक इस बाढ़ की समस्या का समाधान कोई नहीं कर पाया. एक समय ऐसा भी आया जब बाढ़ के लिए चूहों तक को जिम्मेवार ठहरा दिया गया. ये दुर्भाग्यपूर्ण है.
ऐसे लोगों की संख्या लाखों में है जो बाढ़ में अपना सब कुछ गंवा कर पलायन को मजबूर है. उनकी व्यथा अंतहीन है लेकिन दोमुंही राजनीति का ये विद्रुप चेहरा है जिसने आज तक दिल्ली दरबार तक मजबूती से इस त्रासदी को नहीं पहुंचाया.
बिहार के बाढ़ पीड़ितों का दर्द इतना भयानक है कि इसकी कल्पना करने से भी रौंगटे खड़े हो जाते हैं. अपनी खेती को तबाह होते देखना, घर बर्बाद हो जाना, अपना सब कुछ गंवा देना… इसके बाद बिहार के राजनीतिक दलों का पक्ष विपक्ष में बंट जाना और बयानों की बौछार कर देना… क्या इससे समस्या का समाधान हो सका… जवाब है नहीं…
ऐसा नहीं है कि बिहार के बाढ़ को लेकर किसी को चिंता नहीं होती. बिहार के छोटे बड़े मझोले छुटभैये नेता.. किसी से भी पूछ लिजिए.. ऐसा महसूस होगा कि बाढ़ का सबसे बड़ा दर्द उन्हें ही है. हमारे नेताओं को बाढ़ पीड़ितों का गम ऐसा सालता है कि बेचारे रात रात भर सो नहीं पाते हैं.
बिहार में डबल इंजन की सरकार चल रही है. जैसे बिहार में बाढ़ आती है, वैसे ही विकास की बाढ़ चल रही है पिछले 16 सालों से लेकिन बाढ़ की समस्या का कोई समाधान विकास के ये महारथी नहीं कर सकें. बाढ़ के बाद होने वाले पलायन की समस्या का कोई निराकरण आज तक नहीं हो सका. वैसे दावे यह किए जाते हैं कि बिहार का विकास दर चीन से आगे निकल चुका है. ये कौन सा विकास दर है जो बाढ़ पीड़ितों की छाती पर खड़ा होकर चिंघाड़ रहा है.
आज जरुरत थी बिहार को भी जैसे जाति और वोट के सवाल पर एकजुट होकर दिल्ली दरबार तक पहुंच गए वैसे ही बाढ़ और पलायन के सवाल पर भी दिल्ली पहुंचते. राष्ट्रपति से लेकर प्रधानमंत्री तक की चौखट पर जाकर दबाव बनाते. संघर्ष से लेकर विरोध तक की रणनीति पर काम करते….. शायद ऐसा नजारा निकट भविष्य में देखने को मिल जाए तो बिहार का कायाकल्प हो जाए. याद रहे कि बिहार की यह बाढ़ 05 जिले से शुरु हुई थी और अब यह 26 जिलों तक पहुंच गई है. पहले ये केवल गांवों तक सीमित थी, अब यह शहरों तक भी पहुंच गई है. देखना है कि हमारे प्यारे नेताओं की नींद कब खुलती है !