बटुकेश्वर दत्त : एक शूरवीर क्रांतिकारी जिसे कभी नहीं मिल सका उसके हिस्से का उचित सम्मान….

जब भी हिंदुस्तान की जंग ए आजादी के इतिहास पर चर्चा होती है तब तब यह बात सामने आती है कि क्रांतिकारियों को इतिहास में जो स्थान और जो सम्मान मिलना चाहिए था… वह उन्हें नसीब नहीं हो पाया. जबकि इन लोगों ने अपने वतन की आजादी के लिए अपना तन मन धन और जवानी सब कुछ न्यौछावर कर दिया लेकिन यह सर्वोच्च बलिदान किताब के कुछ पन्नां तक ही सीमित रह गया.

ऐसे ही एक महान क्रांतिकारी थें बटुकेश्वर दत्त. बटुकेश्वर दत्त को देश की आजादी के पश्चात उनके जीते जी ही भूला दिया गया था.

आज 18 नवंबर है यानी आज बटुकेश्वर दत्त की जयंती है. बटुकेश्वर दत्त के बारे में सबसे पहले तो यह जान लेना चाहिए कि वह शहीद ए आजम सरदार भगत सिंह के साथी हुआ करते थें. उन्होंने भगत सिंह के साथ मिलकर ही 08 अप्रैल 1929 को सेंट्रल असेंबली में बम गिराया. इस बम धमाके ने अंग्रेजी हुकूमत के कानों के पर्दे फाड़ डाले थें. बटुकेश्वर दत्त को इस बम धमाके के आरोप में आजीवन कारावास की सजा सुनाई गई. उस वक्त बटुकेश्वर दत्त की उम्र महज 19 साल थी.

बटुकेश्वर दत्त ने लंबा समय कालापानी में सजा के तौर पर गुजारा. इस कारावास के दौरान बटुकेश्वर दत्त को खूब प्रताड़ित किया गया. ब्रिटिश सरकार ने कुछ दिनों के बाद बटुकेश्वर दत्त को रिहा कर दिया पर जिसकी खून में ही देशभक्ति शामिल हो वो चुप कैसे रह सकता था ! इसके बाद बटुकेश्वर दत्त भारत छोड़ो आंदोलन में सक्रिय हो गए और फिर पकड़े गए. इस बार उन्हें चार साल की सजा सुनाई गई.

बटुकेश्वर दत्त की शुरुआती जिंदगी की कहानी भी बड़ी दर्दनाक थी. उकना ज्नम 18 नवंबर 1910 को बंगाल के पूर्व वर्धमान के खंडागोश गांव में हुआ था. बटुकेश्वर दत्त की पढ़ाई लिखाई यूपी के कानपुर में हुई थी. वहीं से वह चंद्रशेखर आजाद और सरदार भगत सिंह जैसे आजादी के दीवानों से हो गई. वर्ष 1928 में बटुकेश्वर दत्त ने हिंदुस्तान सोशलिस्ट रिपब्लिकन आर्मी ज्वाइन कर ली. अब क्रांतिकारी बन चुके बटुकेश्वर दत्त को बम बनाने में महारथ हासिल था. इस वजह से वह भगत सिंह के काफी प्रिय बन चुके थें.

वर्ष 1945 में दोबारा जेल से रिहा होने के बाद बटुकेश्वर दत्त बिहार के पटना में रहने लगे थें. देश 1947 में आजाद हो गया था लेकिन बटुकेश्वर दत्त पटना में बेहद संघर्ष की जिंदगी जीने लगे थें. जो सम्मान एक क्रांतिकारी को आजादी के बाद मिलना चाहिए था, वह नहीं मिल पाया. बटुकेश्वर दत्त देश की आजादी के पास किसी नौकरी या रोजगार की तलाश में पटना की खाक छान रहे थें लेकिन उन्हें काम नहीं मिल पाया. जैसे तैसे गुमनामी की जिंदगी गुजर बसर होने लगी. न तन पर ठीक तरह का कपड़ा था और न दोनों वक्त की रोटी नसीब हो रही थी.

लंबे समय तक जेल में रहने की वजह से बटुकेश्वर दत्त को टीबी जैसी बीमारियों ने घेर लिया. जेल की यातनाओं से शरीर बदहाल हो चुका था और बीमारी भारी पड़ने लगी थी.

हालांकि तत्कालीन कांग्रेसी हुकूमत ने बटुकेश्वर दत्त को एमएलसी यानी बिहार विधान परिषद का सदस्य बना दिया लेकिन यह भी कटु सत्य है कि जिंदगी के अंतिम दिनों में बटुकेश्वर दत्त को ठीक तरीके से इलाज भी नहीं मिल सका.

बटुकेश्वर दत्त की तबीयत बिगड़ती जा रही थी. सरकारी तंत्र ने जब तक उनकी सुध ली तब तक देर हो चुकी थी. लंबी बीमारी के बाद 20 जुलाई 1965 को उनका निधन हो गया. बटुकेश्वर दत्त की अंतिम इच्छा थी कि उनका अंतिम संस्कार पंजाब के हुसैनवाला में उस जगह पर हो जहां पर भगत सिंह का अंतिम संस्कार हुआ था. उनकी इस इच्छा को पूरा भी किया गया.

बटुकेश्वर दत्त के बलिदान को सदैव नमन रहेगा लेकिन तकलीफ भी इस बात की रहेगी कि आजदी के इन मतवालों ने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान तो दे दिया लेकिन हम उन्हें सर्वोच्च सम्मान नहीं दे सके. प्रेस जागरण की ओर से बटुकेश्वर दत्त की जयंती पर कोटि कोटि नमन…

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