आखिर रेलवे की पटरियों में जंग क्यों नहीं लगती?
क्या आपने कभी सोचा है,कि रेलवे की पटरियों में जंग क्यों नहीं लगती। बहुत से लोगों को शायद ही यह पता होगा कि आखिर रेलवे की पटरियों में जंग क्यों नहीं लगती, तो चलिए आज इसके बारे में जानते हैं।
ट्रेन में सफर करने वाले अधिकांश लोगों के दिमाग में पटरी को देखकर यही सवाल आता है, कि रेल की पटरी में जंग क्यों नहीं लगती। क्योंकि कहीं ना कहीं हम सभी यह जानते हैं, कि लोहे से बनी अगर कोई भी वस्तु है और उसे पेंट नहीं किया गया हो,तो उसमें जंग लग सकती है।
परंतु पटरी बिना पेंट का होता है, इसके बावजूद उसमें जंग नहीं लगता, आखिर क्या है, इसके पीछे का कारण
आमतौर हम सभी जानते हैं, कि लोहे की चीजों में जंग तब लगती है,जब इससे तैयार कोई भी समान हवा में ऑक्सीजन से रिएक्शन करता है।
इस रिएक्शन के बाद उस चीज पर एक भूरे रंग की पर्त जम जाती है. जिसे आयरन ऑक्साइड बोलते है, यह पर्तों के रूप में जमता है. जैसे-जैसे पर्त बढ़ती है, जंग का मात्रा भी बढ़ता जाता है।
इसलिए अगर रेल की पटरी मामूली लोहे से बना है, तो उसमें जंग लगना तय है और जिसके कारण रेल की पटरी को बार-बार बदला जाएगा और पटरी को बार-बार बदले जाने पर इसमें खर्च भी काफी होगा। इस बात को मद्देनजर रखते हुए रेल की पटरी को बनाने में स्टील और मेंगलाॅय का इस्तेमाल किया जाता है।
तथा इसके मिश्रण को हेडफील्ड या मैंगनीज स्टील कहा जाता है। इस मिश्रण में तकरीबन 12 प्रतिशत तक मैंगनीज और 1 प्रतिशत कार्बन होता है,स्टील में मौजूद इसी मिश्रण के कारण ट्रेन के ट्रैक का ऑक्सीकरण बहुत धीमी गति से होता है और इस वजह से पटरी पर सालों साल तक जंग नहीं लगती है।
अगर रेलवे की पटरियों को मामूली लोहे से तैयार किया जाता तो बारिश के कारण इनमें नमीं बनी रहती और इनमें जंग लग जाता। जंग लगने के बाद पटरियां कमजोर होने लगती और जल्दी-जल्दी बदलने की नौबत आ जाती।
रेल पटरियों को कमजोर होने के कारण दुर्घटनाओं का भी संभावना बढ़ता. इसलिए पटरियों को ऐसे मेटल से तैयार किया जाता है, जिससे पटरियों में जंग नहीं लगे।
इसीलिए रेलवे ट्रैक को जंग प्रतिरोधक धातु से बनाया जाता है और इसके वजह से पटरी को जंग से बचाने के लिए पेंट तक कि भी जरूरत नहीं पड़ती।