जब पासवानों के लिए हाथी पर सवार होकर बिहार पहुंच गई थीं इंदिरा गांधी

आज पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की पुण्यतिथि है. वर्ष 1977 की घटना है. कांग्रेस लोकसभा का चुनाव हार चुकी थी. स्वयं इंदिरा गांधी भी रायबरेली से लोकसभा का चुनाव हार चुकी थीं. जनता पार्टी की सरकार चलते हुए 09 महीने से ज्यादा का वक्त बीत चुका था. बिहार में विधानसभा के चुनाव होने वाले थें. इसी बीच एक घटना हुई.

कुर्मी जाति के कुछ अपराधियों के एक समूह ने बेलछी गांव पर हमला बोल दिया. घंटो गोलीबारी हुई. गोलियों की तड़तड़ाहट से पूरा बेलछी गांव दहल गया. अपराधी इतने वहशी हो गए थें कि 11 लोगों को जिंदा जला दिया गया. एक नौजवान लड़का आग में से निकलकर भागने की कोशिश करने लगा तो उसे पकड़ कर वापस आग के हवाले कर दिया गया. वह वहीं पर धू धू कर जल गया.

मरने वालां में 08 पासवान और 03 सोनार जाति के लोग थें. शायद बिहार में उसी दौर में जातीय नरसंहारों की शुरुआत हो गई थी. घटना पूरे देश की सुर्खियां बनीं. चुनाव हार कर पूर्व प्रधानमंत्री हो चुकी इंदिरा गांधी को जब इस घटना के बारे में जानकारी मिली तो उन्होंने बिहार जाने का फैसला कर लिया.

उन्होंने अपनी बहु सोनिया गांधी से इस बात का जिक्र किया कि मैं बिहार जाना चाहती हूं. वहां पर 11 लोगों को जिंदा जला दिया गया है. सोनिया गांधी ने कहा कि सुरक्षा के लिहाज से आपका बिहार जाना सही नहीं है. बिहार में उस वक्त इंदिरा गांधी के धुर विरोधी बेहद मजबूत स्थिति में थें. इंदिरा और कांग्रेस विरोधी आंदोलन लालू प्रसाद यादव जैसे नेताओं की अगुवाई में बेहद सशक्त स्थिति में था. सोनिया गांधी मना करती रहीं लेकिन इंदिरा गांधी नहीं मानी. उन्होंने बिहार जाने का फैसला कर लिया.

13 अगस्त 1977 की वो तारीख थी. बारिश अपने आवेग पर थी. इंदिरा गांधी ने एयर इंडिया की फ्लाइट पकड़ी और पटना पहुंच गई. एयरपोर्ट से कार लेकर इंदिरा बेलछी के लिए पहुंच गईं. कार जैसे ही ग्रामीण इलाके में पहुंची, कीचड़ इतना था कि आगे जाना संभव नहीं था. बिहार कांग्रेस के नेताओं ने इंदिरा गांधी से कहा कि आप आज का अपना कार्यक्रम स्थगित कर दिजिए. बारिश इतनी तेज है. सड़क टूटी हुई है. आगे जाना मुश्किल है. नालंदा जिले के हरनौत से बेलछी तक का 15 किलोमीटर का यह सफर बेहद दुर्गम था.

इसके बाद ट्रैक्टर का सहारा लिया गया. आगे एक नदी मिल गई. अब इस नदी में ट्रैक्टर का जाना मुश्किल लग रहा था. कोई रास्ता नहीं मिल रहा था. पता चला कि पास के ही एक गांव में हाथी है. इंदिरा गांधी ने कहा, हम हाथी पर बेलछी जाएंगे. बिहार कांग्रेस के सारे नेता अवाक थें. इंदिरा जी… कह क्या रही हैं !

हाथी मंगाया गया. हाथी पर बैठने के लिए हौदा नहीं था. इंदिरा गांधी ऐसे ही बैठने के लिए तैयार हो गईं. रात का घना अंधेरा था. बारिश हो रही थी. हाथी पर सवार होकर ही इंदिरा गांधी नदी पार कर गईं और बेलछी पहुंच गईं.

गांव में नरसंहार की वजह से अजीब सा सन्नाटा पसरा हुआ था. लोग डरे हुए थें. इंदिरा पहुंची तो लोगों के अंदर हिम्मत आ गई. दलित परिवार के लोगों ने उसी भय और गम के माहौल में इंदिरा गांधी का स्वागत किया. इंदिरा गांधी पूरी तरह से भींग गई थी. गांव वालों ने उन्हें साड़ी दिया. गुड़ की मिठाई और पानी पिलाया गया.

इंदिरा वापस जाने लगीं तो गांव की महिलाएं उन्हें पकड़ कर रोने लगीं. हमने आपको वोट नहीं देकर पाप किया है. इंदिरा ने समझाया, वोट आपका अधिकार है. आप जिसे चाहें दे सकती हैं. मुझे लगा कि आपलोग तकलीफ में हैं. आपको इंसाफ मिलना चाहिए, इसलिए मैं आपके पास आ गई. नारे लगाए गएं… इंदिरा तेरे अभाव में… हरिजन मारे जाते हैं.

हाथी पर सवार इंदिरा गांधी ने जोरदार तरीके से पासवानों और सोनारों के नरसंहार का मुद्दा देश भर में उठाया. लोग कहते हैं कि देश भर में कांग्रेस के अस्त होते सूर्य को इंदिरा गांधी के बेलछी दौरे ने दोबारा से उदयगामी बना दिया.

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