क्यों करते है कांवर यात्रा और कांवर यात्रा से क्या लाभ होता है.
हिंदू पंचांग के अनुसार 14 जुलाई यानी कि आज से सावन का पवित्र माह शुरु हो रहा है और यह 12 अगस्त यानी कि रक्षाबंधन के दिन खत्म होगा, कहते हैं कि जो व्यक्ति इस माह में शिव जी को प्रसन्न कर देता है, भगवान उसकी सारी मनोकामना जल्द ही पूरी कर देते हैं. अब इस बात से तो सब वाकिफ ही होंगे कि इसी माह में बहुत से श्रद्धालु कांवर यात्रा के लिए अपने घरों से निकलते हैं और इसी बीच भोलेनाथ के नाम के जयकारे हर जगह सुनने को मिलते हैं.
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लेकिन आज भी बहुत से ऐसे लोग हैं जिन्हें यह पता नहीं होगा कि कांवर यात्रा होता क्या है और आखिर क्यों सावन में ही श्रद्धालु कांवर लेकर जाते हैं अगर नहीं जानते तो चलिए जानते हैं इसके बारे में विस्तार से.
शास्त्रों के अनुसार किसी पावन जगह से कंधे पर गंगाजल लाकर भगवान शिव के उपर जल चढ़ाने की परंपरा को कांवर यात्रा कहते है. सावन मास में भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिए कांवर यात्रा को सहज मार्ग माना जाता है, ऐसा माना जाता है कि अगर कोई सच्चे मन से भगवान से कुछ मांग ले तो वह जरूर पूरा होता है, वही कहा जाता है कि जो भी सावन महीने में कांधे पर कांवर रखकर बोल-बम का नारा लगाते हुए पैदल यात्रा करता है, उसे अश्वमेघ यज्ञ करने जितना फल प्राप्त होता है।
अब प्रश्न यह उठता है कि आखिर सावन में ही क्यों श्रद्धालु लेकर जाते हैं कांवर
लगभग 1 महीने तक सावन के महीने में ही भगवान भोलेनाथ की पूजा अर्चना क्यों की जाती है. भगवान भोलेनाथ प्रकृति के देवता है. आदिदेव हैं, महादेव हैं. वेदों में भगवान महादेव का वर्णन है. इस महीने में प्रकृति की पूजा के रूप में महादेव की पूजा की जाती है. सनातन परंपरा में प्रकृति पूजा को ही सर्वोच्च स्थान दिया गया है. प्रकृति हमें सब कुछ देती है. उसके धन्यवाद स्वरूप सावन के महीने में भगवान भोलेनाथ की पूजा की जाती है.
हालांकि इसके पीछे भी कई तरह की मान्यता है
पौराणिक मान्यता अनुसार कहा जाता है कि पहला कांवरिया रावण था. वेद कहते हैं कि कांवर की परंपरा समुद्र मंथन के समय ही शुरू हुई थी. उस दौरान जब मंथन में विष निकला तो संसार इससे त्राहि-त्राहि करने लगा. भगवान शिव ने इसे अपने गले में रख लिया, लेकिन इससे शिव के अंदर जो नकारात्मक ऊर्जा ने जगह बनाई, उसको दूर करने का काम रावण ने किया. रावण भगवान शिव का सच्चा भक्त था. वह कांवर में गंगाजल लेकर आया और उसी जल से उसने शिवलिंग का अभिषेक किया. तब जाकर भगवान शिव को इस विष से मुक्ति मिली.
कांवर यात्रा के कई नियम हैं. कांवर यात्रा के दौरान नशा, मांस, मदिरा और तामसिक भोजन वर्जित रहता है. आपको बता दें कि श्रद्धालु सावन में 3 तरह से कांवर लेकर जा सकते हैं.
1. सामान्य कांवर : सामान्य कांवर ले जाने वाले कांवरिए आराम से जाते हैं। वे जगह-जगह पर जरूरत या थकावट महसूस होने पर यात्रा के दौरान विश्राम करते जाते हैं।
2. डाक कांवर: इसमें शिव के जलाभिषेक तक लगातार चलते रहना होता है। डाक कांवर ले जाने वाले कांवड़िए आराम नहीं करते हैं।
3. दांडी कांवर : ये भक्त नदी तट से शिवधाम तक की यात्रा दंड देते हुए पूरी करते हैं। ऐसे कांवरिए को शिवधाम तक जाने में महीने भर का वक्त लग जाता है।
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