तलवार लेकर नहीं जाने दिया तो लोकसभा से दे दिया इस्तीफा

उनकी उम्र है 77 साल। पूर्व आईपीएस हैं। दो बार चुनाव जीतकर लोकसभा भी पहुंचे हैं। सिखों से जुड़े पंथक मसलों पर बात करते हैं। नाम है सरदार सिमरनजीत सिंह मान। सीएम भगवंत मान की खाली की हुई संगरूर लोकसभा उपचुनाव में सिमरनजीत सिंह मान अकालियों के सभी धड़ों के संयुक्त उम्मीदवार होंगे। सबसे बड़ी अकाली पार्टी मानी जाने वाली शिरोमणी अकाली दल बादल ने भी उन्हें अपना समर्थन दे दिया है।

सिमरनजीत सिंह मान को पंजाब की गर्म सिख राजनीति की धुरी माना जाता रहा है। उनकी खुद की पार्टी है शिरोमणी अकाली दल अमृतसर।

सिमरनजीत सिंह मान राजनीति में आने से पूर्व आईपीएस अधिकारी थें। 1984 में हुए सिख विरोधी दंगों और ऑपरेशन ब्लू स्टार के विरोध में नौकरी से इस्तीफा दे दिया था। मान 1989 और 1999 में लोकसभा का चुनाव जीत चुके हैं। हाल ही में संपन्न हुए पंजाब विधानसभा चुनाव में वो अपनी पार्टी से हलका अमरगढ़ से विधानसभा के उम्मीदवार थें। अच्छा खासा वोट लाने के बावजूद उन्हें महज साढ़े चार हजार वोटों के अंतर से हार का मुंह देखना पड़ा। अपनी गर्म विचारधारा की वजह से वो पंजाब और पंजाब से बाहर विदेशों में रहने वाले सिखों में काफी लोकप्रिय हैं। उनके चाहने वालों का एक अलग ही समूह है।

सिमरनजीत सिंह मान के नाम पर चुनावी जीत का रिकॉर्ड भी बना हुआ है जो पंजाब के इतिहास में न पहले कभी हुआ था और न दोबारा हो पाया।

सिमरनजीत सिंह मान 18 जून 1984 को पुलिस की नौकरी छोड़कर राजनीति में आए थें। साल था 1989 का। मान तरनतारन सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ रहे थें। सामने कांग्रेस के उम्मीदवार अजीत सिंह मान थें। नतीजा चौंकाने वाला था। 561883 वोट पोल हुए। अकेले सिमरनजीत सिंह मान को 527707 यानी 93.92% वोट प्राप्त हुए थें। दिलचस्प बात तो यह रही की मान सिर्फ अकेले चुनाव नहीं जीते थें, अपने साथ साथ वो पांच अन्य उम्मीदवारों को भी लोकसभा भेजने में कामयाब हो गए थें। आपको यह जानकर हैरानी हो सकती है कि सिमरनजीत सिंह मान ने यह चुनाव जेल से ही लड़ा था।

सिमरनजीत सिंह मान लगभग 30 बार जेल जा चुके हैं या हिरासत में लिए गए हैं लेकिन उन्हें कभी दोषी ठहराया नहीं जा सका।

मान ने जब आईपीएस की नौकरी से इस्तीफा दिया था तब वो सीआईएसएफ के ग्रुप कमांडेंट थें और मुंबई में पोस्टेड थें। इस्तीफा देने के साथ ही उन्हें हिरासत में ले लिया गया था।

सिमरनजीत सिंह मान ने 1966 में केंद्रीय सिविल सेवा परीक्षा दी और 1967 में वो आईपीएस बनें। उन्हें पंजाब कैडर दिया गया था। वो लुधियाना के एएसपी, फिरोजपुर के एसएसपी, फरीदकोट के एसएसपी समेत कई पदों पर रहें। एसएसपी रहते हुए उन पर आरोप लगा कि वो सिर्फ सिखों को ही हथियार का लाइसेंस जारी करते थें।

सिमरनजीत सिंह मान ने 1989 में लोकसभा चुनाव जीतने के बाद संसद में तलवार (कृपाण) लेकर जाने की मांग कर डाली। संसद के नियमों के अनुसार किसी सिख सांसद को सिर्फ छह इंच की कृपाण लेकर जाने की इजाजत थी। मान ने इसके विरोध में 1990 में संसद की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था।

सिमरनजीत सिंह मान की पारिवारिक पृष्ठभूमि की बात करें तो उनका जन्म 1945 में शिमला में हुआ था। उनके पिता लेफ्टिनेंट कर्नल जोगिंदर सिंह मान फौजी अफसर थें। जोगिंदर सिंह मान 1967 में पंजाब विधानसभा के स्पीकर थें। सिमरनजीत सिंह मान की पत्नी गीतिन्द्र कौर पंजाब के पूर्व मुख्यमंत्री कैप्टन अमरिंदर सिंह की पत्नी की बहन हैं।

सिमरनजीत सिंह मान को सिख राष्ट्र खालिस्तान का समर्थक कहा जाता है। आलोचक कहते हैं कि सिमरनजीत सिंह मान जैसे लोगों की वजह से ही पंजाब में रह रह कर खालिस्तान की कहानी जिंदा हो जाती है।

Writer :

Simranjeet Singh ” Editor in Chief ” 

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